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कविता

महाजनी सभ्यता

जसबीर चावला


विशेष हवा / मिट्टी
अधोरचना में
इनका बीजारोपण हुआ
अंकुरित हुए
सजाया / सँवारा / दुलारा गया
कुशल हाथों से
दूसरों का हक मार
खाद पानी दिया
बढ़ने के अवसर
ये जमे / फले
एक के चार / चार के चालीस हुए
अस्तित्व में आ चुका
इनका वजूद
अब इनका वर्ग / आचार / विचार / संस्कृति अलग
अलग धरातल / नस्ल जुदा
बोन्साई पैदा होते
हाथों हाथ लिये जाते
जड़े गहरी नहीं
न विचार / न व्यापार की
वैश्वीकरण की महाजनी सभ्यता
प्रतीक
ये कारपोरेट
बोन्साई

 


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हिंदी समय में जसबीर चावला की रचनाएँ